इंदौर में धर्मांतरण के दस साल पुराने मामले में सजा: आरोपियों ने कहा रामायण-महाभारत काल्पनिक, ईसाई बनने पर फ्री पढ़ाई और इलाज का लालच
इंदौर कोर्ट ने सुनाई सजा, धर्मांतरण का दबाव बनाने पर एक साल की जेल
इंदौर में दस साल पुराने धर्मांतरण के मामले में जिला कोर्ट ने दो आरोपियों को एक-एक साल की सजा सुनाई है। यह सजा 7 दिसंबर को सुनाई गई। आरोपियों ने रामायण, महाभारत जैसे हिंदू धर्मग्रंथों को काल्पनिक बताते हुए लोगों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने फ्री शिक्षा, इलाज, और बिना ब्याज के लोन जैसी सुविधाओं का लालच दिया।
क्या था मामला?
17 अगस्त 2014 को इंदौर के हीरा नगर क्षेत्र में रहने वाले पृथ्वीराज सांलुके ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने बताया कि रोशन ऑगस्टिन और एल्विन सुसाई पाल नामक दो व्यक्ति उन्हें ईसाई धर्म अपनाने का दबाव बना रहे थे। साथ ही, नौकरी और अन्य सुविधाओं का वादा कर रहे थे। जब उन्होंने इसका विरोध किया, तो आरोपियों ने गाली-गलौज और हाथापाई की।
कोर्ट का फैसला
जिला कोर्ट ने दोनों आरोपियों को मप्र धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 1968 की धारा 3 और 4 के तहत दोषी पाया। कोर्ट ने एक-एक साल की जेल और 5-5 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई। जुर्माना न भरने पर तीन महीने की अतिरिक्त जेल होगी। कोर्ट ने कहा कि यह अपराध न केवल भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि देश की एकता और अखंडता को भी प्रभावित करता है।
अंतिम तर्क और संविधान की व्याख्या
मामले के अंतिम दौर में, बचाव पक्ष ने धार्मिक स्वतंत्रता का हवाला देते हुए केरल के एक मामले का जिक्र किया। वहीं, एडीपीओ ज्योति तोमर ने सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 25 (ए) का हवाला दिया, जिसमें अंत:करण की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। कोर्ट ने माना कि किसी को धर्म परिवर्तन के लिए विवश करना संविधान द्वारा वर्जित है और मप्र धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध है।
10 साल बाद न्याय हुआ
पुलिस ने घटना के बाद 2014 में दोनों आरोपियों को गिरफ्तार किया और मामला दर्ज किया था। 26 दिसंबर 2014 को चार्जशीट दाखिल की गई। आखिरकार, न्यायालय ने इस संवेदनशील मामले में फैसला सुनाते हुए दोषियों को दंडित किया।